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वेताज बादशाह - नफ़रत भरी मासूम ख्वाहिश - 1

मुंबई की झोपड़ पट्टी में जहां गरीब और कचरा बीनने वाले लोग रहते हैं, उसी झोपड़ पट्टी में जन्म् हुआ एक छोटे बच्चे का, उसका नाम उसकी मां ने रूद्र रखा|

गरीब मासूम अपने छोटे-छोटे दोस्तों के साथ रहता है और अपने दोस्तों के साथ खेलता है, सिर्फ खेलता है, क्योंकि गरीब होने के कारण उसके पास, या उसकी मां के पास इतने पैसे नहीं होते, कि वह दो वक्त की रोटी के अलावा इतने पैसे बचा सके जिससे रुद्र की पढाई हो सके|

इसलिए वक्त की कोई कमी नहीं थी, तो सुबह खेलने के सिवाय कोई काम भी नहीं होता, उसके पैदा होने के कुछ समय बाद ही उसके पिता की किसी बीमारी की वजह से, और पैसा ना होने के कारण इलाज न होने की वजह से मृत्यु हो जाती है, और कमाई का कोई जरिया ना होने के कारण उसकी मां लोगों के घर में झाड़ू पोछा करके घर चलाती हैं

रुद्र कि मम्मी लोगो के घर झाडू पोंछा और बर्तन साफ करने का काम करती थी जिससे उनका घर का खाने का इंतेजाम होता था|

रुद्र कि मम्मी जहाँ काम करने जाती थी, वहाँ पर एक दीदी बच्चो को पढाती थी, तो जब कभी रुद्र अपनी मम्मी के साथ चला जाता था तो वे रुद्र को भी पढने के लिए बैठा लेती थी, और अगर किसी दिन दीदी रुद्र को डांट देती थी फिर तो रुद्र कई दिनो तक उनके घर गलती से भी नहीं जाता था|

1 दिन कुछ लोग आते हैं और घर का सारा सामान निकाल कर बाहर फेंक देते हैं, और सारे लोगों को झोपड़ पट्टी खाली करने को कहते हैं, और नहीं तो सारी झोपड़ पट्टी को आग लगाने की धमकी देते हैं|

लोगों के पास खाने के लाले होते हैं, तो और कहीं रहने के लिए घर का इंतजाम भला कहां से करते, और 1 दिन वह अनहोनी हो ही जाती है, जिसके बारे में किसी ने सोचा भी नहीं होता है, जब सारे लोग सो रहे होते हैं अचानक से रूद्र को लघुशंका लगने की वजह से आंख खुल जाती है, रुद्र उठकर लघुशंका करने बाहर जाता है और जब लघुशंका करके लौटता है, तो उसे किसी के बात करने की आवाज सुनाई देती है, तो रुद्र ये देखने के लिए की इतनी रात गए कौन हो सकता है, यही देखने के लिए उधर जाता है, तभी पीछे से उजाला मालूम पड़ता है, रुद्र भागकर जाता है और देखता है कि बाहर की तरफ कुछ लोग झोपडीयों में आग लगा रहे होते हैं, या देखकर रुद्र घबरा जाता और भागकर जाता है और लोगों को उठाता है, लेकिन जब तक अपनी झोपडी के पास पहुंचता है तब तक उसकी झोपड़ी पूरी तरह से आग में घिर कर जल चुकी होती है, और उसी तरह सैकडोंग झोपडीयां आग मे जल चुकी होती हैं|

रुद्र हर तरफ अपनी मां को ढूंढता है, लेकिन कहीं नहीं मिलती तो रुद्र परेशान होकर अपने पड़ोसियों से पूछता है, लेकिन किसी को नहीं मालूम होता, अगले दिन जब वो बैठा अपनी मां को याद कर रो रहा होता है|, तब उसके पास उसका दोस्त शिवा आता है, और रोता हुआ कहता है:-

शिवा:- यार मेरी मां और बहन रात को झोपड़ी में जल गई|

इतना सुनते ही रूद्र को याद आता है, कि जब वह झोपडी से बाहर निकला था, तो उसकी मां झोपडी में ही सो रही थी, वह भागकर अपनी जली हुई झोपडी के पास जाता है, और राख को हटाता है, तो उसे अपनी मां का अधजला शरीर मिलता है, रुद्र बुरी तरह से रोने और चिल्लाने लगता है, शिवा उसे शांत कराता है, फिर रुद्र और शिवा कुछ लकड़ी को इकट्ठा करके अपनी मां का अंतिम संस्कार करने के लिए नदी के घाट पर जाता है, तो देखता है कि सैकड़ों की तादात में चितायें जल रही है, और सैकड़ों की तादात में परिवार वाले नदी किनारे बैठकर अपने परिवार वालों को याद करके रो और चिल्ला रहे होते हैं, बड़ा ही ह्रदय विदारक दृश्य होता है...........